Monday 29 January 2018

Ayurved amrit Manoveg manovikar Sharirik vego ko rokne se hani----

अत्रि मुनि के कथनानुसार वेगो को रोकने से उत्पन्न जिन रोगों की परिगणना की गई है ,
उन रोगों से बचने के लिए वेगों को नहीं रोकना आवश्यक है
परंतु इन शारीरिक वेगो के अलावा अन्य वेग भी हैं जिनका संबंध मन वचन और कर्म से है। 
आत्रेय के अनुसार अपना हित चाहने वाले मनुष्य को अपने जीवन में इन वेगों को रोकने का प्रयत्न करना चाहिए
इन वेगो के नाम कुछ इस प्रकार से हैं ----
साहस अर्थात अपनी सामर्थ्य अथवा शक्ति से बाहर के काम करना ,मनुस्मृति तथा कौटिल्य अर्थशास्त्र में साहस शब्द का प्रयोग लूटपाट ,डाका ,बलात्कार आदि घोर अपराधों के लिए किया गया है ।आजकल इस शब्द का अर्थ हिम्मत या दिलेरी से किया जाता है।

चरक संहिता में प्रयुक्त साहस का अर्थ यह नहीं हो सकता क्योंकि साहस के वे को रोकने का उपदेश है
सो प्रसंग के अनुसार साह शब्द का अर्थ बलात्कार आदि अपराध ही लगाना चाहिए
आगे भी कहा है कि मन वचन तथा शरीर से कोई भी निंदनीय काम नहीं करना चाहिए अर्थात ना तो बुरा सोचना चाहिए ना बुरा कहना चाहिए और ना बुरा करना चाहिए
 और पराए धन की इच्छा आदि मन के वेगो को रोकना चाहिए।
 भय, शोक ,क्रोध लोभ अहंकार निर्लज्जता ईर्ष्या अत्यंत राग तथा अत्यंत द्वेष और पराए धन की इच्छा आदि मनके वेगो को रोकना चाहिए।
 कठोर वाणी ,बहुत बोलना,चुभने वाली बात कहनाझूठ बोलना ,समय के अनुसार वचन नहीं बोलना ,इन वेगों को भी रुकना चाहिए।
 इसके अलावा जो कोई भी शारीरिक कर्म दूसरों को पीड़ा देने वाले हैं ,जैसे पर स्त्री गमन ,चोरी, हिंसा आदि उनके वेगो को भी रोकना चाहिए
इस प्रकार मन वचन तथा कर्म से पाप रहित मनुष्य पुण्यवान होता है तथा सुखी रहता हुआ धर्म ,अर्थ और काम का भोग करता है, तथा इसका संचय करता है
इस संचयका अर्थ यह है कि पाप कर्मों से बचने वाला मनुष्य अपने संचित कर्मों में शुभ कर्मों की वृद्धि करता है। जो अगले जन्मों में फलदायक होते हैं

चरक संहिता के इस प्रकरण से प्रकट होगा कि हमारी प्राचीन आयुर्वेद केवल शारीरिक रोगों के निवारण तथा उनकी चिकित्सा के उपाय नहीं बताता ,बल्कि सदाचार पर भी उतना ही बल देता है
इसका कारण यही है कि आचरण हीन अथवा पापी या अपराधी मनुष्य के मन में विकार उत्पन्न हो जाते हैं। जो शरीर में रोग के रूप में प्रकट होते हैं।

 बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह मूत्र ,पुरिष, मल, वीर्य ,पाद, उल्टी ,छींक ,डकार ,भूख ,प्यास ,आंसू और नीद तथा थकावट से होने वाली हांफनी को नहीं रोके
मूत्र ----
मूत्र के वेग को रोकने से मूत्राशय ब्लैडर तथा मूत्र इंद्रिय में शूल कष्ट से मूत्र आना ,सिर दर्द ,दर्द से झुक जाना आदि लक्षण प्रकट होते हैं
मल -----
मल के वेग रोकने से पेट में दर्द ,सिर में दर्द, कब्जियत ,पिंडलियों में हड़कल, आफरा, आदि लक्षण प्रकट होते हैं
वीर्य ------
वीर्य का वेग रोकने से मुत्रेन्द्रिय तथा अंडकोषों में तीव्र वेदना, अंगों में पीड़ा और पेशाब बंद होना यह लक्षण उत्पन्न होते हैं
पाद -----
पाद अर्थात गुदा से निकलने वाली वायु का वेग रोकने से मूत्र तथा मल से निकलने में रुकावट, आफरा, सुस्ती, पेट में दर्द तथा पेट के अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।
 उलटी -----
उलटी यानि कै  को रोकने से यह लक्षण उत्पन्न होते हैं---
 खुजली ,गानों पर धब्बे ,शरीर पर चकत्ते और अरुचि, सूजन पीलिया ,ज्वर, त्वचा के रोग ,जि मिचलाना तथा शरीर पर छाले
छींक----
छींक रोकने से सिर में दर्द ,आधासीसी का दर्द ,इंद्रियों की दुर्बलता उत्पन्न होते हैं
डकार -----
डकार  रोकने से हिचकि,खांसी, अरुचि, कपकपी ,छाती में भारीपन के लक्षण उत्पन्न होते हैं
जम्हाइ----
जम्हाइ को रोकने से शरीर में ऐंठन ,शरीर का सिकुड़ना, कंपनी आदि रोग उत्पन्न होते हैं।

jamhai leta hua bachcha

भूख----
 भूख का वेग रोकने से कमजोरी ,शरीर का वर्ण बिगड़ना, अंगों में पीडा, अरुचि और चक्कर आना लक्षण उत्पन्न होते हैं।
प्यास,------
 प्यास को रोकने से कंठ और मुंह का सूखना ,बहरापन, थकावट और छाती में दर्द आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
 आंसू ------
आंसुओं को रोकने से जुकाम ,नेत्र के रोग अरूचि, चक्कर आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं
निद्रा -----
अर्थात नींद को रोकने से यह रोग उत्पन्न होते हैं---- जंभाइया आना, अंगों में पीड़ा ,आलस्य झपकियां आना ,सिर के रोग और आंखों में भारीपन।

sota hua aadami

हांफनी----
 परिश्रम से उत्पन्न हांफनी को रोकने से तिल्ली बढ़ना ,हृदय के रोग ,मूर्छा आदि रोग उत्पन्न होते हैं।



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