Friday 26 January 2018

Ayurved amrit Mani Mantra aur Aushadhi----

वैदिक परंपरा के अनुसार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा के मुख से वेद प्रकट हुआ ।कालांतर में ब्रह्मा का यह दिव्य विज्ञान ऋषि यों को प्राप्त हुआ और उन्होंने इस ज्ञान को मंत्रों में निबंध किया ।वेदों के प्रत्येक मंत्र का द्रष्टा कोई-न-कोई ऋषि है
 रचनाभेद से 3 ही वेद माने जाते हैं ऋक्,यजुः तथा साम। पद्य भाग ऋक् कहलाता है ,गद्य भाग यजुः कहलाता है, और गेय मंत्रों को साम कहा जाता है। चौथा अथर्ववेद तीनों कर्मकांडों के निरीक्षक के लिए रचा गया है ।
द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास ने समस्त वेद वांग्मय का संपादन किया और चारों वेदों को अपने चार मुख्य शिष्यों को पढ़ाया ।इन शिष्यों ने अपनी अपनी शैली में वेदों का प्रचार किया जिससे अनेक शाखा भेद हो गए ।

कहते हैं चारों वेदों की कुल 1131 शाखाएं थी ,परंतु अब इनमें से केवल 19 ही मिलती हैं। इन्हें कहीं कहीं क्रम भेद भी हैं। वेद मंत्रों के पाठो वर्गों और अक्षरों को सुरक्षित रखने के लिए पद-पाठ जटा पाठ धन पाठ आदि आठ प्रकार के पाठों का आविष्कार किया गया ।

 चार वेदों के चार उपवेद माने जाते हैं ।आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद तथा अर्थवेद। 

चरणव्यूह के अनुसार आयुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद है,धनुर्वेद यजुर्वेद का उपवेद है, गंधर्व वेद सामवेद का उपवेद है और अथर्ववेद (अर्थशास्त्र) अथर्ववेद का उपवेद है ।

परंतु चरक सुश्रुत तथा भाव प्रकाश के मत से आयुर्वेद अथर्ववेद का उपवेद है ,क्योंकि अथर्ववेद में आयुर्वेद से संबंध रखने वाले अनेक रोगों की चिकित्सा ,जड़ी बूटियों के उपयोग ,मंत्र चिकित्सा ,सूर्य किरण चिकित्सा आदि के  मंत्र है ।

 यह अत्यंत दुर्योग की बात है कि  चारों वेदों में से कोई भी उपवेद मूल रूप में नहीं मिलता ।हां इन वेदों के आधार पर कुछ आर्ष ग्रंथ अवश्य मिलते हैं ।

धनुर्वेद तथा अथर्ववेद पर तो कोई ग्रंथ अब तक मिला ही नहीं ।गांधर्ववेद पर भरतमुनि का नाट्यशास्त्र है और आयुर्वेद पर चरक सुश्रुत  तथा वाग्भट के ग्रंथ हैं।

अर्थशास्त्र पर चाणक्य का एकमात्र कोटलिय अर्थशास्त्र मिला है ,जो बहुत बाद की रचना है। आयुर्वेद के अवतरण के संबंध में चरक तथा सुश्रुत में अलग-अलग आख्यान है।

औषधियों का वर्गीकरण----

 वनस्पति आदि उद्भिदो में 16 औषधियां मूलिनी है अर्थात इन की जड़ो का उपयोग होता है ।

फलिनी  औषधियां 19 हैं। जिनके फलों का उपयोग होता है ।
महास्नेह 4 हैं। 
लवण 5 हैं ।
मूत्र 8 है तथा दूध भी आठ है।

4 महास्नेह  है--जो इस प्रकार है -घी तेल वसा (चर्बी )तथा मजा (हड्डियों के भीतर का भाग )इनका प्रयोग पीने में मालिश में बस्ती (एनिमा) में तथा नाक से चढ़ाने में होता है। 

यह स्नेह पदार्थ शरीर को चिकना बनाते हैं जीवन शक्ति को बढ़ाते हैं ।त्वचा के वर्ण को साफ करते हैं तथा शरीर को पुष्ट करते हैं ।

और लवण पांच है-- काला नमक सेंधा नमक विड नमक रेह से निकाला हुआ नमक यानी सांभर नमक और समुद्री नमक। 

यह पांचों नमक  गर्म तीखे और जठराग्नि अर्थात पाचन शक्ति को बढ़ाने वाले हैं। उनका प्रयोग मालिश के लिए कब्ज दूर करने के लिए तथा अजीर्ण ,बदहजमी, गुलमें ,तिल्ली का बढ़ जाना, पेट के दर्द और पेट के अन्य रोगों के लिए होता है।

आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाले मूत्र आठ प्रकार के होते हैं -

भेड़ का मूत्र ,बकरी का मूत्र, गाय का मूत्र ,भैंस का मूत्र, हाथी का मूत्र, ऊंट का मूत्र ,घोड़े का मूत्र ,और गधे का मूत्र।
( भाव प्रकाश नामक पुस्तक में तो मनुष्य के मूत्र का भी उल्लेख है)।

 सभी मूत्र -गर्म, तीखे ,खारे, सूखे तथा करवे होते हैं ।

मुत्र का उपयोग मलने लेप करने सिकाई करने और पसीना लाने के लिए किया जाता है ।

कब्ज उदर रोग बवासीर गुल्म कुष्ठ आदि रोगों में मूत्र का प्रयोग हितकर होता है। विषनाशक औषधियों में भी मूत्र का प्रयोग होता है ।

प्रत्येक मूत्र के अलग-अलग गुण होते हैं

 आयुर्वेद के अनुसार दूध आठ प्रकार के होते हैं --
भेड़ का दूध ,बकरी का दूध ,गाय का दूध ,भैंस का दूध, ऊंटनी का दूध ,हथिनी का दूध, घोड़ी का दूध ,तथा स्त्री का दूध।
 दूध --मधुर चिकना और ठंडा होता है।  यह तृप्त करने वाला ,शरीर के मांस को बढ़ाने वाला वीर्यवर्धक बुद्धिवर्धक बलवर्धक मन को प्रसन्न करने वाला जीवन शक्ति को बढ़ाने वाला थकावट दूर करने वाला और श्वास रोग तथा खांसी को नष्ट करने वाला है ।

दूध सभी प्राणियों के लिए हितकर है चोट या घाव को भरता है प्यास मिटाता है पाचन शक्ति को बढ़ाता है और पतले दुबले लोगों को लाभ पहुंचाता है।

 यह सब दूधों के सामान्य गुण हैं अलग-अलग दूधों के अलग-अलग विशेष गुण होते हैं।
 गाय का दूध मधुर शीतल मृदु घी युक्त चिकना घना चिपचिपा भारी मंद और निर्मल होता है। इन्हीं गुणों के अनुसार यह दूध ओज को बढ़ाता है ।

गाय का दूध जीवनी द्रव्यों अर्थात दूधों में सर्वश्रेष्ठ है और इसे रसायन कहा गया है ।
भैंस का दूध गाय के दूध की अपेक्षा भारी तथा शीतल होता है ।इसमें घी भी अधिक होता है।

 अनिद्रा रोग में हितकर होता है भैंस का दूध उसे पीना चाहिए जिसकी पाचन शक्ति भरपूर हो।

बकरी का दूध कसैला मधुर शीतल विषनाशक और हल्का होता है ।

यह रक्तपित्त अतिसार पेचिश क्षय  खांसी ,ज्वर नाशक होता है।

स्त्री का दूध जीवनदाई, शरीर का मांस बढ़ाने वाला ,मानव शरीर के अनुकूल तथा चिकनाई देने वाला है ।रक्तपित्त में नाक से चढाने के लिए तथा आंखों के दर्द मे आंखों में डालने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

भेड़ का दूध हिचकी और खांसी करने वाला गर्भ और पित्त कफ को बढ़ाने वाला होता है ।


रोग निवारण तथा आरोग्य के लिए जिन पार्थिव द्रव्यों का उल्लेख है उनमें मणियों को भी शामिल किया गया है ।
आयुर्वेद के अनुसार-- 

मणि ,मंत्र तथा औषधि यह तीनों चिकित्सा के साधन है ।

कहा भी गया है-- (मणिमंत्रोंसधीनां अचीन्तय  प्रभावः)।  

मणियो तथा मंत्रों के प्रभाव को आधुनिक आयुर्विज्ञान श्विकार नहीं करता बल्कि इन की खिल्ली उड़ाता है। 

परंतु कितने ही एलोपैथिक डॉक्टर इनके प्रभावों पर केवल विश्वास ही नहीं करते बल्कि इनके उपयोग को सलाह भी देते हैं। इसका कारण यही है कि व्यवहार में मणि चिकित्सा मंत्र चिकित्सा से रोगों की शांति के उदाहरण सामने आते रहते हैं ।

आधुनिक आयुर्विज्ञान भले ही इन्हें स्वीकार न करें परंतु आधुनिक विग्यान को नई-नई सूक्ष्म खोजें इन प्राचीन धारणाओ को पुष्ट करती जा रही है।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार विभिन्न मणियाँ अशुभ ग्रहों के उपद्रवो की शांति के लिए, अशुभ ग्रहों के प्रभाव को बल प्रदान करने के लिए धारण की जाती है।

सूर्य की मणि -माणक है ,चंद्रमा की मोती तथा चंद्रमणि -मूनस्टोन, मंगल की मूंगा ,बुद्ध की पन्ना, गुरू की पुखराज ,शुक्र कि हीरा, शनी कि नीलम ,राहु की गोमेद और केतु की लहसुनिया है ।

यह मणिया- ग्रहों की चमक के रंगों के अनुसार मानी गई है ,अर्थात प्रकाश की किरण किसी मणि पर पड़ती हैं तो उनका रंग उस ग्रह की किरणों के रंग जैसा हो जाता है क्योंकि रंगों का शरीर पर प्रभाव पड़ता है ,सो मणियों के रंगों का भी वैसा ही प्रभाव पड़ता है ।

मन्त्रों के प्रभाव का पुराणों में वर्णन मिलता है और शैव तथा शाक्त आगमो मे मंत्र की बहुत प्रतिष्ठा है ।

एक विदेशी तांत्रिक सर जौनवुडराफ ने आपने अपनी पुस्तक -द गारलैड आव लैटर्स- में तथा उनके भाई स्वामी प्रत्यगा आत्मानंद  ने अपनी पुस्तक -जप सूत्रं मे मंत्र शास्त्र का वैज्ञानिक आधार पर विवेचन किया है।

 आधुनिक विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि ध्वनि तथा प्रकाश तरंगों के रुप में गति करते हैं और एक प्रकार की तरंगों को दूसरे प्रकार की तरंगों में तथा दोनों का विद्युत चुंबकीय तरंगों में परिवर्तित किया जा सकता है। रेडियो, संवाक् चलचित्र तथा टेलीविजन इस तरह के परिवर्तन के व्यवहारिक प्रयोग है ।

इसीलिए यह माना जा सकता है कि मंत्र के उच्चारण से जो ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं ,वह शरीर में विद्युत चुंबकीय तरंगों का संचार कर के उसे मंत्र के प्रभाव के अनुसार विद्युत से आविष्ट कर देती हैं।

 सारे बीज मंत्र तथा मंत्र सिद्ध योगियों ने अपने अनुभव के आधार पर बनाए हैं।

 इस विषय के जिग्यासुओ को मंत्र शास्त्र के ग्रंथ पढने चाहिए।

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