महर्षि अत्रि अपने शिष्य अग्निवेश को सद्वृत अर्थात श्रेष्ठ आचरण का उपदेश देते हैं।इनके कथनानुसार----
विद्वान पुरुषों, गो ,ब्राह्मण, गुरु, वेद ,सिद्ध और आचार्य इनकी पूजा करनी चाहिए ।
अग्नि की सेवा करें ।उत्तम औषधियों को धारण करें ।
दोनों समय स्नान तथा संध्या उपासना करें । गुदा आदि मल मार्गों को तथा पावों को स्वच्छ रखें। एक पखवाड़े में कम से कम तीन बार क्षौरकर्म यानी हजामत करना चाहिए।
ऐसे वस्त्र पहनना चाहिए जो फटे और मैले ना हो ।
सुगंधित फूल धारण करने चाहिए ।
वेशसाधुजनों के समान उत्तम हों। बालों का प्रसाधन करना चाहिए ।सिर और पावों पर तेल मले । कान और
नाक में भी तेल डालें ।
परस्पर मिलने पर दूसरों के बोलने से पहले सत्कार के वचन बोलने चाहिए ।प्रसन्र मुख रहना चाहिए ।कठिनाई यानी मुसीबत आने पर धीरज रखें ।होम और दान करना चाहिए ।यज्ञ करें दान करें चौराहे को नमस्कार करें ।
कुत्तों ,रोगियों और चांडालों के लिए यज्ञ का शेष भाग रखें ।अतिथियों की पूजा करें ,पितरों को पिंडदान करें, समय पर तथा हितकर वचन बोले ,कम और मीठा बोले ,इंद्रियों को वश में रखे, धर्म के अनुसार आचरण करें । श्रेष्ठ कर्म करें परंतु उनके फल की इच्छा नहीं करें।
विचारों को पक्का ,भयरहित ,लज्जाशील ,बुद्धिमान ,उत्साही ,क्षमावान तथा आस्तिक होना चाहिए ।बिनय ,बुद्धि ,विद्या ,कुल तथा वय में जो वृद्ध हो तथा सिद्धों ,आचार्यों की उपासना करनी चाहिए ।
छत्र धारण करना चाहिए अर्थात छतरी लेकर चलना चाहिए ।हाथ में डंडा रखना चाहिए ।जूते पहनना चाहिए ।सिर पर पगड़ी पहननी चाहिए ।
रास्ता चलते समय 4 हाथ की दूरी तक निगाह डालनी चाहिए । ऐसे स्थानों पर नहीं जाना चाहिए जहां चीथड़े, हड्डियां ,कांटे ,बाल ,भूसे का ढेर, राख ,ठीकरे आदि पड़े हो।
थकावट होने से पहले ही व्यायाम बंद कर देना चाहिए। सारे प्राणियों को अपना बंधु समझना चाहिए ।
क्रुद्ध जनों को अनुनय-विनय से समझाना चाहिए। डरे हुओं को आश्वासन देना चाहिए ।दीनों को सहारा देना चाहिए ।
सत्य प्रतिज्ञ ,शांति युक्त दूसरों के कठोर वचन सहने वाला होना चाहिए ।असहिष्णुता तथा क्रोध को त्यागना चाहिए ।शांत स्वभाव तथा राग ,द्वेष आदि के कारणों को नाश करने वाला होना चाहिए ।
झूठ नहीं बोले ।दूसरों के धन का अपहरण नहीं करें ।पराई स्त्री पर कुदृष्टि ना डालें ।पराए धन का लालच ना करें । पाप नहीं करें ,पाप का अवसर आने पर भी अथवा पापी के संग रह कर भी पाप नहीं करें।
अपकारक के प्रति भी अपकार नहीं करें अर्थात अपना बुरा करने वाले का भी बुरा नहीं करें। दूसरे लोगों के दोषों का बखान नहीं करें ।किसी की गुप्त बातों को प्रकट नहीं करें। किसी की निंदा नहीं करें ।
अधार्मिक तथा राजद्रोही लोगों के पास नहीं बैठे ।
पागल पतित, गर्भपात करने वाले नीच दुष्ट जनों के साथ नहीं रहे ।दुष्ट सवारियोंयों पर नहीं बैठे। कठोर और घुटनों से ऊंचे आसन पर बैठे ।ऐसे सैया पर नहीं सोए हैं जिस पर बिस्तर न बिछा हो । सिरहाना ना लगा हो और जो ऊंची नीची हो ।
पहाड़ों की बहुत ऊंची चोटियों पर भ्रमण नहीं करें ।पेड़ों पर नहीं चढ़े ।तेज धार वाले जल में स्नान नहीं करें ।नदियों के किनारों पर नहीं बैठे। जहां आग लग रही हो उसके आस पास नहीं घूमें। अपानवायु (पाद) को ऐसे छोडें की शब्द ना हो, जम्हाई छींक और खांसी आने पर मुंह को हाथ से ढक ले। नाक को नहीं कुरेदे। अंगो से बुरी हरकते नहीं करें ।
अत्यंत चमक वाली ज्योंतियों को तथा अपवित्र वस्तुओं को नहीं देखें। रात के समय मंदिर आदि देवगृहों में ,खुली जगह में चौराहे पर बाग-बगीचों में शमशान मे और वध स्थानों में निवास नहीं करें ।बहुत दिनों से खाली पड़े मकान में और निर्जन वन में अकेला नहीं जाएं। दुराचारी स्त्री दुराचारी मित्रों और नर्तकों को साथ नहीं रखें।
श्रेष्ठ जनों का विरोध नहीं करें नीच जनों का संगत नहीं करें ।कुटिल यानी छली धूर्त और सठ लोगों के साथ नहीं रहे ।दुष्टो का सहारा नहीं ले। ना तो डरे ना किसी को डरावे। साहस यानी बलात्कार नहीं करें। अति अधिक सोना अति अधिक जागना अति अधिक भोजन अत्यधिक पान इनसे बचे ।घुटनों को ऊंचा उठा कर यानी ऊंकडू देर तक न बैठें ।
जब तक थकावट दूर ना हो तब तक स्नान नहीं करें ।सिरको गीला किए बिना और नंगा होकर स्नान नहीं करें। कमर से नीचे के वस्त्र से सिर को नहीं पोछै। जिन वस्त्रों को पहनकर स्नान किया हो उन्हें ही नहीं पहने ।
रत्न घृत पूज्य तथा मंगलकारी दृश्य और पुष्प का स्पर्श किए बिना घर से नहीं निकले।
घर से निकलते समय मंगलकर पदार्थ दाहिनी ओर तथा अमंगलकार पदार्थ बायीं ओर रहे।
विद्वान पुरुषों, गो ,ब्राह्मण, गुरु, वेद ,सिद्ध और आचार्य इनकी पूजा करनी चाहिए ।
अग्नि की सेवा करें ।उत्तम औषधियों को धारण करें ।
दोनों समय स्नान तथा संध्या उपासना करें । गुदा आदि मल मार्गों को तथा पावों को स्वच्छ रखें। एक पखवाड़े में कम से कम तीन बार क्षौरकर्म यानी हजामत करना चाहिए।
ऐसे वस्त्र पहनना चाहिए जो फटे और मैले ना हो ।
सुगंधित फूल धारण करने चाहिए ।
वेशसाधुजनों के समान उत्तम हों। बालों का प्रसाधन करना चाहिए ।सिर और पावों पर तेल मले । कान और
नाक में भी तेल डालें ।
परस्पर मिलने पर दूसरों के बोलने से पहले सत्कार के वचन बोलने चाहिए ।प्रसन्र मुख रहना चाहिए ।कठिनाई यानी मुसीबत आने पर धीरज रखें ।होम और दान करना चाहिए ।यज्ञ करें दान करें चौराहे को नमस्कार करें ।
कुत्तों ,रोगियों और चांडालों के लिए यज्ञ का शेष भाग रखें ।अतिथियों की पूजा करें ,पितरों को पिंडदान करें, समय पर तथा हितकर वचन बोले ,कम और मीठा बोले ,इंद्रियों को वश में रखे, धर्म के अनुसार आचरण करें । श्रेष्ठ कर्म करें परंतु उनके फल की इच्छा नहीं करें।
विचारों को पक्का ,भयरहित ,लज्जाशील ,बुद्धिमान ,उत्साही ,क्षमावान तथा आस्तिक होना चाहिए ।बिनय ,बुद्धि ,विद्या ,कुल तथा वय में जो वृद्ध हो तथा सिद्धों ,आचार्यों की उपासना करनी चाहिए ।
छत्र धारण करना चाहिए अर्थात छतरी लेकर चलना चाहिए ।हाथ में डंडा रखना चाहिए ।जूते पहनना चाहिए ।सिर पर पगड़ी पहननी चाहिए ।
रास्ता चलते समय 4 हाथ की दूरी तक निगाह डालनी चाहिए । ऐसे स्थानों पर नहीं जाना चाहिए जहां चीथड़े, हड्डियां ,कांटे ,बाल ,भूसे का ढेर, राख ,ठीकरे आदि पड़े हो।
थकावट होने से पहले ही व्यायाम बंद कर देना चाहिए। सारे प्राणियों को अपना बंधु समझना चाहिए ।
क्रुद्ध जनों को अनुनय-विनय से समझाना चाहिए। डरे हुओं को आश्वासन देना चाहिए ।दीनों को सहारा देना चाहिए ।
सत्य प्रतिज्ञ ,शांति युक्त दूसरों के कठोर वचन सहने वाला होना चाहिए ।असहिष्णुता तथा क्रोध को त्यागना चाहिए ।शांत स्वभाव तथा राग ,द्वेष आदि के कारणों को नाश करने वाला होना चाहिए ।
झूठ नहीं बोले ।दूसरों के धन का अपहरण नहीं करें ।पराई स्त्री पर कुदृष्टि ना डालें ।पराए धन का लालच ना करें । पाप नहीं करें ,पाप का अवसर आने पर भी अथवा पापी के संग रह कर भी पाप नहीं करें।
अपकारक के प्रति भी अपकार नहीं करें अर्थात अपना बुरा करने वाले का भी बुरा नहीं करें। दूसरे लोगों के दोषों का बखान नहीं करें ।किसी की गुप्त बातों को प्रकट नहीं करें। किसी की निंदा नहीं करें ।
अधार्मिक तथा राजद्रोही लोगों के पास नहीं बैठे ।
पागल पतित, गर्भपात करने वाले नीच दुष्ट जनों के साथ नहीं रहे ।दुष्ट सवारियोंयों पर नहीं बैठे। कठोर और घुटनों से ऊंचे आसन पर बैठे ।ऐसे सैया पर नहीं सोए हैं जिस पर बिस्तर न बिछा हो । सिरहाना ना लगा हो और जो ऊंची नीची हो ।
पहाड़ों की बहुत ऊंची चोटियों पर भ्रमण नहीं करें ।पेड़ों पर नहीं चढ़े ।तेज धार वाले जल में स्नान नहीं करें ।नदियों के किनारों पर नहीं बैठे। जहां आग लग रही हो उसके आस पास नहीं घूमें। अपानवायु (पाद) को ऐसे छोडें की शब्द ना हो, जम्हाई छींक और खांसी आने पर मुंह को हाथ से ढक ले। नाक को नहीं कुरेदे। अंगो से बुरी हरकते नहीं करें ।
अत्यंत चमक वाली ज्योंतियों को तथा अपवित्र वस्तुओं को नहीं देखें। रात के समय मंदिर आदि देवगृहों में ,खुली जगह में चौराहे पर बाग-बगीचों में शमशान मे और वध स्थानों में निवास नहीं करें ।बहुत दिनों से खाली पड़े मकान में और निर्जन वन में अकेला नहीं जाएं। दुराचारी स्त्री दुराचारी मित्रों और नर्तकों को साथ नहीं रखें।
श्रेष्ठ जनों का विरोध नहीं करें नीच जनों का संगत नहीं करें ।कुटिल यानी छली धूर्त और सठ लोगों के साथ नहीं रहे ।दुष्टो का सहारा नहीं ले। ना तो डरे ना किसी को डरावे। साहस यानी बलात्कार नहीं करें। अति अधिक सोना अति अधिक जागना अति अधिक भोजन अत्यधिक पान इनसे बचे ।घुटनों को ऊंचा उठा कर यानी ऊंकडू देर तक न बैठें ।
जब तक थकावट दूर ना हो तब तक स्नान नहीं करें ।सिरको गीला किए बिना और नंगा होकर स्नान नहीं करें। कमर से नीचे के वस्त्र से सिर को नहीं पोछै। जिन वस्त्रों को पहनकर स्नान किया हो उन्हें ही नहीं पहने ।
रत्न घृत पूज्य तथा मंगलकारी दृश्य और पुष्प का स्पर्श किए बिना घर से नहीं निकले।
घर से निकलते समय मंगलकर पदार्थ दाहिनी ओर तथा अमंगलकार पदार्थ बायीं ओर रहे।
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